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☆☆हजरत उसमान (रजी अल्लाहु अन्हु) की शहादत☆☆【Part :02】



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♥अजीज दोस्तो :- बलवाई सैकड़ो की तादाद मे उसमान (रजी अल्लाहु अन्हु) के गिर्द आकर जामा हो गये और मकान को घेर लिया। यह कहा की अब हम आपको कत्ल किये बेगैर न छोड़ेगे। सब का आना जाना अंदर बन्द कर दिया। उसमान (रजी अल्लाहु अन्हु) के नमाज के वास्ते भी घर से न निकलने दिया। कोई चिज खाने की भी अंदर न जाने दी। यहां तक की आपका पानी भी बंद किया। जो  कुछ घर मे था वह सब खत्म हुआ। फिर सारा झर प्यास से मरने लगा। जब सात दिन बराबर इसी तरह गुजरे और किसी को एक कतरा भी पानी न मिला तब हजरत उसमान (रजी अल्लाहु अन्हु) ने अपने मकान की खिड़की से सिर बाहर निकाला और अवाज दी यहां अली है? किसी ने जवाब न दिया। फरमाया: यहां सअद है।? फिर किसी ने जवाब न दिया।

हजरत उसमान (रजी अल्लाहु अन्हु) ने फरमाया:की ऐ उम्मते मुहम्मदीया! रोम व फारस के बादशाह भी अगर किसी को कैद करते है तो जरुर कैदी को दाना पानी देते है।
ऐ लोगो! मै तुम्हारा ऐसा गुनाहगार कैदी हुं की मुझको पानी भी नही देते। कोइ अल्लाह के वास्ते उसमान को एक प्याला पानी का दे। उसके बदले मे पहला प्याला जो मुझको मेरे नबी से हौजे कौसर पर मिलेगा उसको दुंगा । वहां हौजे कौसर के किसको परवाह थी। मगर जब हजरत अली (रजी अल्लाहु अन्हु) को खबर हुई तो तीन मशके आपने भरकर कमर पर तलवार बांधी। सर पर हुजुर ﷺ का अमामा बांधकर पानी लेकर चले। लोगो से कहा यह काम तो काफीर भी नही करते  जो काम तुमने किया।पानी बंद न करो । देखो! गजबे ईलाही नाजील हो जाएगा । मगर उन जालीमो ने मशको मै बरछे मारकर पानी निकाल दिया।
इतने मे उम्मे हबीबा उम्मुल मोमीनीन (रजी अल्लाहु अन्हा) एक खच्चर पर सवार होकर और एक पानी कि मशक साथ लेकर आई। ख्याल किया की यह कमबख्त मेरा तो अदब करेंगे।
लोगो से कहा की बनु उमैइया की कुछ अमानते उसमान के पास है। जरा मै उनके पास जाना चाहती हुं ताकी वह अमानते लेकर आऊं। यह सुनकर बलवाई बोले:-ओ झुठी! यह कहकर खच्चर के मुंह पर लकड़ी मारी और बन्ध काट दिया । खच्चर आपको ले भागा। हजरत उम्मुल मोमिनीन गिरते गिरते बची।
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☆यह देखकर लोग घबराये और कहा खुदा तुम्हारा नास करे अजवाजे नबी (नबी की बिबी) के साथ भी बुरी तरह पेश आने लगे। अहले मदीना को बहुत गुस्सा आया और तलवारे लेकर हजरत उसमेन से अर्ज किया अब तो अजवाजे नबी की भी हुरमते होने लगी। ऐ उसमान! अब तो लड़ने की इजाजत दिजीए। फरमाया! तुम मेरे लिए अपनो जान कुरबान मत करो। मूझे अगर लड़ना मंजुर होता तो अब तक हजारहा फौजे शाम और इराक से मंगवाता। मै लड़ना हरगीज नहो चाहता । सबको कसमे देकर वापस कर दिये । फिर जब कुछ दिन गुजरे और हजरत उसमान को प्यास की बहुत सख्त तकलीफ हुई तो आपने फिर अपने मुंह खिड़की से बाहर निकाला । फरमाया तुम जानते हो जब हुजुर ﷺ मदीना मुनव्वरा मे आये थे तो यहां पानी मुस्लमानो को मोल लेना पड़ता था। कुंआ यहुदी के कब्जे मे था । हुजुर ﷺ ने फरमाया: कौन है जो इस कुंए को खरीदे और उसके बदले मे  जन्नत का चश्मा ले।?
मैने वह कुंआ 35 हजार का खरीदकर तुम्हारे उपर वक्फ कर दिया था। वही आज मै हुं चालीस दिन से पानी के लिये उसमान के बच्चे रोते है। उन्हे पानी नही मिलता। लोगो तुमको मालुम है की मस्जिदे नबवी शुरू मे निहायत तंग थी मैने पच्चीस हजार  देकर मस्जिदे नब्वी मे शामील की। आज मै ऐसा हो गया की तुम मुझको उसी मस्जिद मे दो रकअत पढ़ने से रोकते हो। लोगो क्यामत के रोज क्या जवाब दोगे??
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√ Post Written By :-
#(मोहम्मद अरमान गौस अंसारी)