Unknown

Namaz Ka Bayan Part~4

نــمــاز کـا بــیــان

حــصــہ: 04 ســے 62

نــمــاز مــیــں کــتــنــے فــرائــضــں ہــے ؟

نــمــاز مــیــں کُـل 7 فــرائــضــں ہــے.

1 - تــكــبــيــرے تــحــريــمــہ
2- قــیــام ( كــھــڑے ہــونــا )
3 -: قــرآت ( قــرآن پــڑھــنــا )
4 - رکــوع
5- ســجــود ( ســجــدے )
6 - قــعــده أخــره
7 - ســلام پھیـــرنــا


ــمــعــلــومــات: ان مــیــں ســے ایــک بھـــی فــرضــں چھــوٹ جــائــے تــو نــمــاز نــہــیــں ہـــوگــی. نــمــاز دوبــارہ پــڑھــنــی ہــوگــی.

1 - نــمــاز مــیــں پهـــلا فــرضــں تــكــبــيــر تــحــريــمــہ حــقــیــقــت مــیــں تــكــبــيــر تــحــريــمــہ جـو تــكــبــيــر اولـی بھــی ہـے. نــمــاز کــی شــرطــوں مــیــں ســے ہــے اور نــمــاز کـے فــرا ئـضــں مــیــں بھــی اســکــی گــنــتــی ہــےالــلّــه اكــبــر کــہــہ کــر نــمــاز شــروع کــرتــے ہــیــں اســں کــو تــكــبــيــر تــحــريــمــہ كــهــتــے ہــے. نــمــازی امــام کــے پــیــچھــے جــمــاعــت مــیــں رکــوع کــے وقــت شــامــل هــوا اور الــلّــه اکــبر كــهــتــا هــوا ركــوع مــیــں گــیــا مــطــلــب نــمــازی کــی تــکــبــیــر اســں وقــت پــوری ہــوئــی جــب وہ رکــوع مــیــں پہــنــچ گــیــا تھــا تــو نــمــاز نــہــیــں ہــوگــی. ایــســے مــوقــع پــر نــمــاز کــو پــهــلــے کھــڑے کھــڑے تــکــبــیــر كــهــہ کــر اســں کــےبــعــد الــلّــه اكــبــر کــہــتــے ہــوئــے رکــوع مــيــں جـانــا چــاہــيــے. اگــر ركــوع مــیــں امــام کــو اتــنــی دیــر بھــی پــا لــیــا کــے ركــوع کــی ايــک تــســبــیــح بھــی پــڑھ لــى تــواســں کــو رکــعــت مــل گــئــی اور نــمــازی کــے ركــوع مــیــں جــانــے ســے پــهــلے امــام کھــڑا ہــو تــو رکــعــت نــہ مــلــی

2 - نــمــاز کـا دوســرا فــرضــں قــیــام : نــمــاز مــیــں قــبــلہ رخ ســيدهــا کھــڑے ہــونــے کــو قــیــام کــہــتے ہــیــں. جــتــنــے وقــت تــک قــرآت ہــے اتــنــی ہــى وقــت تــک قــیــام ہــے فــرضــں، وتــر، عــيــديــن اور فــجــر کــی ســنــت مــیــں قــیــام فــرضــں ہــےاگــر بــغــیــر صــحــیــح اُجــر کــے نــمــاز بــیــٹھ کــر ادا کــرے تــو نــمــاز نــہــیــں ہــوگــی کھــڑے ہــونــے ســے تھــوڑی ســی تــكـلــيــف ہــونــا یــہ اُجــر نــہــیــں ہــو ســکــتــا یــا ســجــدہ کــرنــے مــیــں زخــم بــهــتــا یــا کھــڑے ہــونــے مــیــں پــیــشــاب کــی جــگــہ ســے قــطــرہ ٹــپــکــتــا ہــے یــا کھــڑے ہــونــے ســے بــیــمــاری بــڑهــتــی ہــے یــا بــرداشــت ســے زیــادہ تــکــلــیــف ہــوتــی ہــے تــو بــیــٹھ کــر ان نــمــازوں کــو پـــڑھ ســکــتــا ہــے اگــر اتــنــی دیــر کھــڑا ہــو ســکــتــا ہــے کـےالــلّــه اكــبــر كــهــہ لــے تــو فــرضــں ہــے کــے کھــڑا ہــو کــر الــلّــه اكــبــر كــہــہ لــے پھــر بــیــٹھ جــائــے. كھــڑے ہــو کــر پــڑھــنــےکــی طــاقــت ہــو تــب بھــی بــیــٹھ کــر نــفــل پــڑھ ســکــتــا ہــےمــگــر كھــڑے ہــو کــر پــڑھــنــا اافــضــل ہـےبــعــضــں لــوگ نــفــلــی نــمــاز کــو بــیــٹھ کــر پــڑھــنــا ضــروری ســمــجــھــتے ہــیــں یــہ غــلــط بــات ہــے بــیــٹھ کــر پــڑھــنــے ســے ثــواب نــصــف ہــو جــاتــا ہــے

مـــســلــکِ اعــلٰــی حــضــرت ســلامــت رہــیــں

ایــک پــہــچــان دیــن نــبــیﷺ کــے لــیــے.

جــمــاعــتِ رضــائــے مــصــطــفــے

नमाज़ का बयान

भाग : 04 से 62

नमाज़ में कितने फराइज़ है ?
नमाज़ में कूल 7 फराइज़ है.
1 - तक्बीर-ए-तेहरीमा.
2 - क़याम (खङे होना )
3 - : क़िरत ( क़ुरान पढ़ना )
4 - रुकू
5- सुजूद ( सज्दे )
6 - क़ाईदा-ए-अखिरा
7 - सलाम फेरना

सूचना : इन में से एक भी फर्ज छुट जाये तो नमाज़ नही होगी | नमाज़ फिर से पढ़नी होगी.

1 - नमाज़ में पेह्ला फर्ज़ तक्बीर-ए-तेहरीमा .
हक़ीक़त में तक्बीर-ए-तेहरीमा जो तक्बीर-ए-औला भी है. नमाज़ की शर्तो में से है और नमाज़ के फराइज़ में भी इस की गिन्ती है
अल्लाहू अक्बर केह कर नमाज़ शुरू करते है इस को तक्बीर-ए-तेहरीमा केहते है . नमाज़ी ईमाम के पीछे जमाअत में रूकू के वक़्त शामिल हुवा और अल्लाहू केहता हुवा रूकू में गया मत्लब नमाज़ी की तक्बीर उस वक़्त पूरी हुई जब वो रूकू में पाहुंच गया था तो नमाज़ नही होगी । ऐसे मौक़े पर नमाज़ को पेह्ले खड़े खड़े तकबीर केह कर इस के बाद अल्लाहू अक्बर केह्ते हुवे रूकू में जाना चाईऐ । अगर रूकू में ईमाम को इतनी देर भी पा लिया के रूकू की एक तस्बीह भी पढ़ली तो उस को रकाअत मिल गयी और नमाज़ी के रूकू में जाने से पेह्ले ईमाम खड़ा हो तो ना मिली

2 - नमाज़ का दूसरा फर्ज़ क़याम : नमाज़ में क़िब्ला रुख सीदे खड़े होने को क़याम केह्ते है । जितने वक़्त तक क़ीरत है । उतनी ही वक़्त तक क़याम है
फर्ज़ , वित्र, ईदेन और फज़्र की सुन्नत में क़याम फर्ज़ है
अगर बगैर सही उज़्र के नमाज़ बैठ कर अदा करे तो नमाज़ नही होगी खड़े होने से थोरी सी तक्लीफ होना ये उज़्रू नही हो सकता या सज्दा करने में ज़खम बेह्ता या खड़े होने में पेशाब की जगाह से क़त्रा टपकता है या खड़े होने से बीमारी बदती है या बर्दाश्त से ज़्यादा तकलीफ़ होती है तो बैठ कर इन नमाज़ो को पढ़ सकता है अगर इतनी देर खड़ा हो सकता है के अल्लाहू अक्बर केह ले तो फर्ज़ है के खड़ा हो कर अल्लाहू अक्बर केह ले फिर बैठ जाये. खड़े हो कर पढ़ने की ताक़त हो तब भी बैठ कर नफ्ल पढ़ सकता है
मगर खडा हो कर पढ़ना अफ्ज़ल है
बाज़ लोग नफिल नमाज़ को बैठ कर पढ़ना ज़रूरी समझते है ये गलत बात है | बैठ कर पढ़ने से सवाब आधा हो जाता है

मस्लक-ए-आला हजरत सलामत रहे

एक पेह्चान दीन-ए-नबीﷺ के लिये

जमाअत रजा-ए-मुस्तफा

NAMAAZ KA BAYAAN

PART : 04 OF 62

NAMAAZ MEIN KITNE FARA'IZ HAI ?
NAMAAZ MEIN KUL 7 FARA'IZ HAI.
1 - TAKBIR-E-TAHRIMA.
2 - QAYAAM ( KHADE HONA )
3 - QEERAT ( QURAAN PADHNA )
4 - RUKU
5- SUJOOD ( SAJDE )
6 - QAI'DA-E-AKHIRA
7 - SALAAM PHERNA

NOTE : IN MEIN SE EK BHI FARZ CHUT JAYE TOH NAMAAZ NAHI HOGI. NAMAZ PHIR SE PADHNI HOGI.

1 - NAMAAZ MEIN PEHLA FARZ TAKBIR-E-TAHRIMA.
HAQEEQAT MEIN TAKBIR-E-TAHRIMA JO TAKBIR-E-AULA BHI HAI. NAMAAZ KI SHARTO MEIN SE HAI AUR NAMAAZ K FARA'IZ MEIN BHI IS KI GINTI HAI.
ALLAHU AKBAR KEH KAR NAMAAZ SHURU KARTE HAI IS KO TAKBIR-E-TAHRIMA KEHTE HAI. NAMAAZI IMAAM K PICCHE JAMAAT MEIN RUKU K WAQT SHAMIL HUWA AUR ALLAHU AKBAR KEHTA HUWA RUKU MEIN GAYA MATLAB NAMAAZI KI TAKBIR US WAQT POORI HUWI JAB WO RUKU MEIN PAHONCH GAYA THA TOH NAMAAZ NAHI HOGI. AISE MAUQE PAR NAMAZI KO PEHLE KHADE KHADE TAKBIR KEH KAR IS K BAAD ALLAHU AKBAR KEHTE HUWE RUKU MEIN JAANA CHAIYE. AGAR RUKU MEIN IMAAM KO ITNI DHER BHI PAA LIYA K RUKU KI EK TASBEEH BHI PADLI TOH US KO RAKAT MILL GAYI AUR NAMAZI K RUKU MEIN JAANE SE PEHLE IMAAM KHADA HO GAYA TOH RAKA'AT NA MILI.

2 - NAMAAZ KA DUSRA FARZ QAYAAM : NAMAAZ MEIN QIBLA RUKH SIDHE KHADE HONE KO QAYAAM KEHTE HAI. JITNI DHER TAK QEERAT HAI. QAYAAM UTNI HE DHER TAK HAI.
FARZ , WITAR , EIDAIN AUR FAJR KI SUNNAT MEIN QAYAAM FARZ HAI. AGAR BAGAIR SAHIH UZR K YE NAMAAZE BAITH KAR AADA KARE TOH NAHI HOGI. KHADE HONE SE THODI SI TAKLIF HONA YE UZR NAHI HAI. KHADA NAHI HO SAKTA YA SAJDA NAHI KAR SAKTA YA KHADE HONE YA SAJDA KARNE MEIN ZAKHAM BEHTA HAI. YA KHADE HONE MEIN PESHAB KI JAGAH SE QATRA TAPAKTA HAI. YA KHADE HONE SE BEEMAARI BADHTI HAI. YA BARDAST SE ZAYADA TATLEEF HOTI HAI. TOH BAITH KAR IN NAMAAZO KO PADH SAKTA HAI. AGAR ITNI DHER KHADA HO SAKTA HAI K ALLAHU AKBAR KEH LE TOH FARZ HAI K KHADA HO KAR ALLAHU AKBAR KEH LE PHIR BAITH JAYE. KHADE HO KAR PADHNE KI TAAQAT HO TAB BHI BAITH KAR NAFL PADH SAKTE HAI. MAGAR KHADE HO KAR PADHNA AFZAL BEHTAR HAI. BAAZ LOG NAFL NAMAAZ KO BAITH KAR PADHNA ZAROORI SAMJHTE HAI. YE GALAT BAAT HAI. BAITH KAR PADHNE SE SAWAB AADHA HO JATA HAI.

MASLAK-E-AALA HAZRAT SALAMAT RAHE

EK PEHCHAN DEEN-E-NABIﷺ K LIYE