نــمــاز کـا بــیــان
حــصــّہ 13 ســے 62
نــمــاز کــی کــچھ ضــروری مــســائــل
( الــف )
امــام کــے پــیــچھــے پــڑھـنـے والــے نـمـازی یــعــنــی مــقــتــعــدی نــے تــکــبــیــرہ تــحــریــمــہ کــا لــفــظ الــاّــه اکــبــر اســں طــرح کــہــا کــے الــاّــه امــام کــے ســاتھ کــہــا مــگــر اکــبــر امــام ســے پــہــلــے خــتــم کــیــا تــو اســں مــقــتــعــدی کــی نـمـاز نــہــیــں ہــوئــی مــقــتـعــدی اور اکــیــلا پــڑھــنــے والــے کــو تــکــبــیــرہ تــحــریــمــہ زور ســے کــہــنــے کــی ضــرورت نــہــیــں ہــے۔صــرف اتــنــی آواز ضــروری ہــے کــہ خــود ســن ســکــے مــگــر مــکــبــر کــو زور ســے تــکــبــیــر دیــنــا چــاہــیــے ۔
اگــر کــوئــی ایــســا بــیــمــار یــا کــمــزور ہــے کــہ دیــوار یــا کــســی چــیــز کــا ســہــارا لــیــکــر یــا ٹــیــک لــگا کــر کہــڑا ہــو ســکــتــا ہــے تــو فــرضــں ہــے کــہ ٹــيـک لــگا کــر کہــڑا ہــو کــر پــڑھــے ۔
(فــتــاو ی رضــویــہ جــلــد نــمــبــر 3 صــفــحــہ نــمــبــر 53 )
قــرآن پــڑھــنــے مــیــں تــجــويــد ضــروری ہــے کــم از کــم اتــنــی کــہ حــرف صــحــیــح ادا ہــو اور غــلــط پــڑھــنــے ســے بــچــے نـمـاز کــے صــحــیــح ہــونــے کــے لــیــے تــجــويــد کــا فــن جــانــنــا ضــروری نــہــیــں بــســں حــروف صــحــیــح ادا ہــونــا ضــروری ہــے بــہــت ســے ایــســے لــوگ بھــی ہــوتــے ہــے جــو سُــن سُــن کــر صــحــیــح پــڑھــتــے ہــے اگــر ان ســے حــروف کــے مــخــرج کــے بــارے مــیــں پــوچھــا جــائــے تــو مــخــرج بــتــا نــہــیــں ســکــتــے لــیــکــن قــرآن صــحــیــح پــڑھــتــے ہــے۔
( فــتــاوی رضــویــہ جــلــد نــمــبــر 3 صــفــحــہ نــمــبــر 128 )
جــمــاعــت کــے ســاتھ نـمـاز پــڑھـنـے والــے نـمـازی یــعــنــی مــقــتــعــدی کــو نـمـاز مــیــں قــرآت پــڑھــنــا جــائــز نــہــیــں ۔ نــاہــی ســورہ فــاتــحــہ نــا ہــی کــوئــی دوســری آیــت پــڑھــے اور ظــہــر عــصــر مــغــرب عــشــاء کــی تــیــســری چــوتھــی رکــعــت مــیــں بھــی نــا پــڑھــے امــام کــی قــرآت مــقــتــعــدی کــے لــیــے کــافــی ہــے۔
( فــتــاوی رضــویــہ جــلــد نــمــبــر 3 صــفــحــہ نــمــبــر 62 - 88 )
امــام نــے زور ســے قــرآت شــروع کــردی ہــو تــو مــقــتــعــدی سَــنــا نہ پــڑھــے بَــل کــے چــپ رہــے کــر قــرآت ســنــيــں کــیــونــکــہ قــرآت کا ســنــنــا فــرضــں ہــے۔
( فــتــاوی رضــویــہ جــلــد نــمــبــر 3 صــفــحــہ نــمــبــر 61 )
( ب )
حــضــرتِ ســاد بــن وقــاصـں رحــمــتــہ الــلّــه عــلــیــہ نــے فــرمــایــا کــہ مــیــں اســں بــات کــو پــســنــد کــرتــا ہــو جــو امــام کــے پــیــچھــے قــرآت کــرے اســں کــے مــنــہ مــیــں آگ ہــو۔
فــاروق اعــظــم رضــی الــلّــه عــنــہ فــرمــاتــے ہــیــں کــہ جــو امــام کــے پــیــچھــے قــرآت کــرتــا ہــے۔کــاش اســں کــے مــنــہ مــیــں پــتھــر ہــو۔
امــام کــا زور ســے پــڑھـنـے کــا مــطــلــب یــہ ہــے کــہ دوســرے لــوگ کــم از کــم پــہــلــے صــفــت والــے سُــن ســکــے ۔
نـمـاز مــیــں زور ســے آمــیــن کــہــنــا مــکــروہ اور خــلاف ســنّــت ہــے ۔
مــنــفــرد ( اکــیــلا پــڑھــنــے والا ) کــو جــہــری نـمـاز فــجــر مــغــرب عــشــاء مــیــں اخــتــیــار ہــے کــہ چــاہــے تــو آہــســتــہ قــرآت کــرے یا زور ســے کــرے لــیــکــن افــضــل یــہ ہــے کــہ زور ســے پــڑھـے۔ اور اگــر قــضــا پــڑھ رہــا تــو دهــیــرے پــڑھنــا واجــب ہــے
امــام کــے لــیــے ضــروری ہــے کــہ بــیــمــار بــڈھــے کــمــزور اور کــام پـر جــانے والا ضــرورت مــنــد مــقــتــعــدیــوں کــا لــہــاز کــرتــے ہــوے لــمــبــی قــرآت نــا کــرے ان کــو تــکــلــیــف پــہــنــچــے بَــل کــہ قــرآت چهــوٹــی کــرے۔
( فــتــاوی رضــویــہ جــلــد نــمــبــر 3 صــفــحــہ نــمــبــر 120 )
مـــســلــکِ اعــلٰــی حــضــرت ســلامــت رہــیــں
ایــک پــہــچــان دیــن نــبــیﷺ کــے لــیــے.
جــمــاعــتِ رضــائــے مــصــطــفــے
........................................
नमाज़ का बयान
भाग : 13 से 62
नमाज़ के कुछ ज़रूरी मसाईल
. . . ( ए ) . . .
इमाम के पीछे पढ़ने वाले नमाज़ी ( मुक़्तदी ) ने तक्बीर-ए-तेहरीमा का लफ्ज़ अल्लाहू अकबर इस तरह कहा के अल्लाहू इमाम के साथ कहा मगर अकबर इमाम से पेह्ले खत्म किया तो उस मुक़्तदी की नमाज़ नही हुवी
मुक़्तदी और अकेला पढ़ने वाले को तक्बीर-ए-तेहरीमा ज़ोर से केहने की ज़रूरत नही.
सिर्फ इतनी आवाज़ ज़रूरी है के खुद सूने. मगर मुकब्बीर को ज़ोर से तक्बीर देना चाईऐ .
अगर कोई ऐसा बीमार या कमज़ोर है के दीवार या किसी चीज़ का सहारा लेकर या टेक लगा कर खड़ा हो सकता है तो फर्ज है के टेक लगा कर खड़ा हो कर पढ़े.
फतावा-ए-रज़्विया
जिल्द न. 03 , पेज न. 53
क़ूरान पढ़ने में तज्वीद ज़रूरी है. कम-अज़-कम इतनी के हुरुफ़ सहीह अदा हो और गलत पढ़ने से बचे
नमाज़ के सहीह होने के लिये तज्वीद का फन जान्ना ज़रूरी नही. बस हुरुफ़ सहीह अदा होना ज़रूरी है. बहुत से ऐसे लोग भी होते है जो सून सून कर सहीह पढ़ते है. अगर उन से हुरुफ़ के मख्रज के बारे में पूछा जाये तो मख्रज बता नही सकते लेकिन वो क़ूरान सहीह पढ़ते है.
फतावा-ए-रज़्विया
जिल्द न. 03 , पेज न. 128
जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने वाले नमाज़ी यानी मुक़्तदी को नमाज़ में क़ीरत पढ़ना जाइज़ नही.
नाही सुरेह फातिहा , नाही कोई दूसरी आयात पढ़े और ज़ोहर , असर , मगरिब , इशा की तीसरी और चौथी रकाअत में भी ना पढ़े .
इमाम की क़ीरत मुक़्तदी के लिये काफ़ी है.
फतावा-ए-रज़्विया
जिल्द न. 03 , पेज न. 62-88
इमाम ने ज़ोर से क़ीरत शुरू करदी हो तो मुक़्तदी सना ना पढ़े बल के चुप रह कर क़ीरत सुने क्यू के क़ीरत का सुन्ना फर्ज़ है.
फतावा-ए-रज़्विया
जिल्द न. 03 , पेज न. 61
. . . ( बी ) . . .
हज़रत-ए-साद बिन वक़ास رحمة الله عليه ने फरमाया के में इस बात को पसंद करता हू जो इमाम के पीछे क़ीरत करे उस के मुँह में अंगार हो. और फारूक़-ए-अज़म رضي الله عنه फरमाते है के जो इमाम के पीछे क़ीरत करता है. काश उस के मुँह में पत्तर हो. इमाम का ज़ोर से पढ़ने का मतलब ये है के दूसरे लोग कम-अज़-कम पेह्ली सफ्त वाले सून सके.
नमाज़ में ज़ोर से अमीन केह्ना मकरुह और खिलाफ़-ए-सुन्नत है.
मुन्फरिद ( अकेले पढ़ेने वाला ) को जेहरी नमाज़ फज्र , मगरिब , इशा में इख्तियार है के चाहे तो आहिस्ता क़ीरत करे या ज़ोर से करे लेकिन अफ्ज़ल ये है के ज़ोर से पढ़े .
और अगर क़ज़ा पढ़ रहा हो तो धीरे पढ़ना वाजिब है.
इमाम के लिये ज़रूरी है के बीमार , बुधे , कमज़ोर और काम पर जानेवाला ज़रूरत मंद मुक़्तदी का लिहाज करते हुवे लंबी क़ीरत ना करे के उन को तकलीफ़ पहुंचे बल के क़ीरत छोटी करे.
फतावा-ए-रज़्विया
जिल्द न. 03 , पेज न. 120
मस्लक-ए-आला हजरत सलामत रहे
एक पेह्चान दीन-ए-नबीﷺ के लिये
जमाअत रजा-ए-मुस्तफा
........................................
NAMAAZ KA BAYAAN
PART : 13 OF 62
NAMAAZ K KUCH ZAROORI MASAAIL
. . . ( A ) . . .
IMAAM K PICHE PADHNE WALE NAMAAZI ( MUQTADI ) NE TAKBEER-E-TAHRIMA KA LAFZ ALLAHU AKBAR IS TARAH KAHA K ALLAHU IMAAM K SAATH KAHA MAGAR AKBAR IMAAM SE PEHLE KHATM KIYA TOH US MUQTADI KI NAMAAZ NAHI HUWI
MUQTADI AUR AKELA PADHNE WALE KO TAKBEER-E-TAHRIMA ZORR SE KEHNE KI ZAROORAT NAHI.
SIRF ITNI AAWAAZ ZAROORI HAI K KHUD SOONE. MAGAR MUKABBIR KO ZORR SE TAKBEER DENA CHAIYE.
AGAR KOI AISA BEEMAAR YA KAMZOR HAI K DEEWAAR YA KISI CHEEZ KA SAHARA LEKAR YA TEK LAGA KAR KHADA HO SAKTA HAI TOH FARZ HAI K TEK LAGA KAR KHADA HO KAR PADHE.
FATAWA-E-RAZVIYAH
JILD NO. 03 , PAGE NO. 53
QUR'AAN PADHNE MEIN TAJWEED ZAROORI HAI. KAM-AZ-KAM ITNI K HURUF SAHIH AADA HO AUR GALAT PADHNE SE BACHE
NAMAAZ K SAHIH HONE K LIYE TAJWEED KA FUN JANNA ZAROORI NAHI. BAS HURUF SAHI AADA HONA ZAROORI HAI. BOHUT SE AISE LOG BHI HOTE HAI JO SOON SOON KAR SAHI PADHTE HAI. AGAR UN SE HURUF K MAKHAARIJ K BAARE MEIN PUCHA JAYE TOH MAKHAARIJ BATA NAHI SAKTE LEKIN WO QUR'AAN SAHIH PADHTE HAI.
FATAWA-E-RAZVIYA
JILD NO. 03 , PAGE NO. 128
JAMA'AT K SAATH NAMAAZ PADNE WALE NAMAAZI YAANI MUQTADI KO NAMAAZ MEIN QEER'AT PADHNA JAA'IZ NAHI.
NAHI SUREH FATHIYA , NAHI KOI DUSRI AAYAT PADHE AUR ZOHAR , ASAR , MAGREEB , ISHA KI TEESRI AUR CHOTHI RAKA'AT MEIN BHI NA PADHE.
IMAAM KI QEERAT MUQTADI K LIYE KAAFI HAI.
FATAWA-E-RAZWIYA
JILD NO. 03 , PAGE NO. 62-88
IMAAM NE ZORR SE QEERAT SHURU KARDI HO TOH MUQTADI SANA NA PADHE BAL K CHUP REH KAR QEERAT SOONE Q K QEERAT KA SUNNA FARZ HAI.
FATAWA-E-RAZWIYA
JILD NO. 03 , PAGE NP. 61
. . . ( B ) . . .
HAZRAT-E-SAAD BIN WAQAAS رحمة الله عليه NE FARMAYA K MEIN IS BAAT KO PASAND KARTA HU JO IMAAM K PICHE QEERAT KARE US K MUNH MEIN ANGAAR HO. AUR..FAROOQE AAZAM رضي الله عنه FARMATE HAI K JO IMAAM K PICHE QEERAT KARTA HAI. KASH US K MUNH MEIN PATTAR HO. IMAAM KA ZORR SE PADHNE KA MATLAB YE HAI K DUSRE LOG KAM-AZ-KAM PEHLI SAFF WALE SOON SAKE.
NAMAAZ MEIN ZORR SE AMEEN KEHNA MAKRUH AUR KHILAAF-E-SUNNAT HAI.
MUNFARID ( AKELE PADHNE WALA ) KO JAHRI NAMAAZ FAJR , MAGREEB , ISHA MEIN IKHTIYAAR HAI K CHAHE TOH AAHISTA QEERAT KARE YA ZORR SE KARE LEKIN AFZAL YE HAI K ZORR SE PADHE.
AUR AGAR QAZA PADH RAHA HO TOH DHEERE PADHNA WAAJIB HAI.
IMAAM K LIYE ZAROORI HAI K BIMAAR , BUDHE , KAMZOR AUR KAAM PAR JANEWALA ZAROORAT MAND MUQTADIYO KA LIHAZ KARTE HUWE LAMBI QEERAT NA KARE K UN KO TAKLEEF PAHUNCHE BAL K QEERAT CHOTI KARE.
FATAWA-E-RAZWIYA
JILD NO. 03 , PAGE NO. 120
MASLAK-E-AALA HAZRAT SALAMAT RAHE
EK PEHCHAN DEEN-E-NABIﷺ K LIYE
💟طالِبِ دُعا:-
جماعت رضا ء مصطفے ﷺ ٰباندرہ(ممبئی)
JaⓂat Raza E Ⓜustafa ﷺ Bandra(Mumbai)
حــصــّہ 13 ســے 62
نــمــاز کــی کــچھ ضــروری مــســائــل
( الــف )
امــام کــے پــیــچھــے پــڑھـنـے والــے نـمـازی یــعــنــی مــقــتــعــدی نــے تــکــبــیــرہ تــحــریــمــہ کــا لــفــظ الــاّــه اکــبــر اســں طــرح کــہــا کــے الــاّــه امــام کــے ســاتھ کــہــا مــگــر اکــبــر امــام ســے پــہــلــے خــتــم کــیــا تــو اســں مــقــتــعــدی کــی نـمـاز نــہــیــں ہــوئــی مــقــتـعــدی اور اکــیــلا پــڑھــنــے والــے کــو تــکــبــیــرہ تــحــریــمــہ زور ســے کــہــنــے کــی ضــرورت نــہــیــں ہــے۔صــرف اتــنــی آواز ضــروری ہــے کــہ خــود ســن ســکــے مــگــر مــکــبــر کــو زور ســے تــکــبــیــر دیــنــا چــاہــیــے ۔
اگــر کــوئــی ایــســا بــیــمــار یــا کــمــزور ہــے کــہ دیــوار یــا کــســی چــیــز کــا ســہــارا لــیــکــر یــا ٹــیــک لــگا کــر کہــڑا ہــو ســکــتــا ہــے تــو فــرضــں ہــے کــہ ٹــيـک لــگا کــر کہــڑا ہــو کــر پــڑھــے ۔
(فــتــاو ی رضــویــہ جــلــد نــمــبــر 3 صــفــحــہ نــمــبــر 53 )
قــرآن پــڑھــنــے مــیــں تــجــويــد ضــروری ہــے کــم از کــم اتــنــی کــہ حــرف صــحــیــح ادا ہــو اور غــلــط پــڑھــنــے ســے بــچــے نـمـاز کــے صــحــیــح ہــونــے کــے لــیــے تــجــويــد کــا فــن جــانــنــا ضــروری نــہــیــں بــســں حــروف صــحــیــح ادا ہــونــا ضــروری ہــے بــہــت ســے ایــســے لــوگ بھــی ہــوتــے ہــے جــو سُــن سُــن کــر صــحــیــح پــڑھــتــے ہــے اگــر ان ســے حــروف کــے مــخــرج کــے بــارے مــیــں پــوچھــا جــائــے تــو مــخــرج بــتــا نــہــیــں ســکــتــے لــیــکــن قــرآن صــحــیــح پــڑھــتــے ہــے۔
( فــتــاوی رضــویــہ جــلــد نــمــبــر 3 صــفــحــہ نــمــبــر 128 )
جــمــاعــت کــے ســاتھ نـمـاز پــڑھـنـے والــے نـمـازی یــعــنــی مــقــتــعــدی کــو نـمـاز مــیــں قــرآت پــڑھــنــا جــائــز نــہــیــں ۔ نــاہــی ســورہ فــاتــحــہ نــا ہــی کــوئــی دوســری آیــت پــڑھــے اور ظــہــر عــصــر مــغــرب عــشــاء کــی تــیــســری چــوتھــی رکــعــت مــیــں بھــی نــا پــڑھــے امــام کــی قــرآت مــقــتــعــدی کــے لــیــے کــافــی ہــے۔
( فــتــاوی رضــویــہ جــلــد نــمــبــر 3 صــفــحــہ نــمــبــر 62 - 88 )
امــام نــے زور ســے قــرآت شــروع کــردی ہــو تــو مــقــتــعــدی سَــنــا نہ پــڑھــے بَــل کــے چــپ رہــے کــر قــرآت ســنــيــں کــیــونــکــہ قــرآت کا ســنــنــا فــرضــں ہــے۔
( فــتــاوی رضــویــہ جــلــد نــمــبــر 3 صــفــحــہ نــمــبــر 61 )
( ب )
حــضــرتِ ســاد بــن وقــاصـں رحــمــتــہ الــلّــه عــلــیــہ نــے فــرمــایــا کــہ مــیــں اســں بــات کــو پــســنــد کــرتــا ہــو جــو امــام کــے پــیــچھــے قــرآت کــرے اســں کــے مــنــہ مــیــں آگ ہــو۔
فــاروق اعــظــم رضــی الــلّــه عــنــہ فــرمــاتــے ہــیــں کــہ جــو امــام کــے پــیــچھــے قــرآت کــرتــا ہــے۔کــاش اســں کــے مــنــہ مــیــں پــتھــر ہــو۔
امــام کــا زور ســے پــڑھـنـے کــا مــطــلــب یــہ ہــے کــہ دوســرے لــوگ کــم از کــم پــہــلــے صــفــت والــے سُــن ســکــے ۔
نـمـاز مــیــں زور ســے آمــیــن کــہــنــا مــکــروہ اور خــلاف ســنّــت ہــے ۔
مــنــفــرد ( اکــیــلا پــڑھــنــے والا ) کــو جــہــری نـمـاز فــجــر مــغــرب عــشــاء مــیــں اخــتــیــار ہــے کــہ چــاہــے تــو آہــســتــہ قــرآت کــرے یا زور ســے کــرے لــیــکــن افــضــل یــہ ہــے کــہ زور ســے پــڑھـے۔ اور اگــر قــضــا پــڑھ رہــا تــو دهــیــرے پــڑھنــا واجــب ہــے
امــام کــے لــیــے ضــروری ہــے کــہ بــیــمــار بــڈھــے کــمــزور اور کــام پـر جــانے والا ضــرورت مــنــد مــقــتــعــدیــوں کــا لــہــاز کــرتــے ہــوے لــمــبــی قــرآت نــا کــرے ان کــو تــکــلــیــف پــہــنــچــے بَــل کــہ قــرآت چهــوٹــی کــرے۔
( فــتــاوی رضــویــہ جــلــد نــمــبــر 3 صــفــحــہ نــمــبــر 120 )
مـــســلــکِ اعــلٰــی حــضــرت ســلامــت رہــیــں
ایــک پــہــچــان دیــن نــبــیﷺ کــے لــیــے.
جــمــاعــتِ رضــائــے مــصــطــفــے
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नमाज़ का बयान
भाग : 13 से 62
नमाज़ के कुछ ज़रूरी मसाईल
. . . ( ए ) . . .
इमाम के पीछे पढ़ने वाले नमाज़ी ( मुक़्तदी ) ने तक्बीर-ए-तेहरीमा का लफ्ज़ अल्लाहू अकबर इस तरह कहा के अल्लाहू इमाम के साथ कहा मगर अकबर इमाम से पेह्ले खत्म किया तो उस मुक़्तदी की नमाज़ नही हुवी
मुक़्तदी और अकेला पढ़ने वाले को तक्बीर-ए-तेहरीमा ज़ोर से केहने की ज़रूरत नही.
सिर्फ इतनी आवाज़ ज़रूरी है के खुद सूने. मगर मुकब्बीर को ज़ोर से तक्बीर देना चाईऐ .
अगर कोई ऐसा बीमार या कमज़ोर है के दीवार या किसी चीज़ का सहारा लेकर या टेक लगा कर खड़ा हो सकता है तो फर्ज है के टेक लगा कर खड़ा हो कर पढ़े.
फतावा-ए-रज़्विया
जिल्द न. 03 , पेज न. 53
क़ूरान पढ़ने में तज्वीद ज़रूरी है. कम-अज़-कम इतनी के हुरुफ़ सहीह अदा हो और गलत पढ़ने से बचे
नमाज़ के सहीह होने के लिये तज्वीद का फन जान्ना ज़रूरी नही. बस हुरुफ़ सहीह अदा होना ज़रूरी है. बहुत से ऐसे लोग भी होते है जो सून सून कर सहीह पढ़ते है. अगर उन से हुरुफ़ के मख्रज के बारे में पूछा जाये तो मख्रज बता नही सकते लेकिन वो क़ूरान सहीह पढ़ते है.
फतावा-ए-रज़्विया
जिल्द न. 03 , पेज न. 128
जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने वाले नमाज़ी यानी मुक़्तदी को नमाज़ में क़ीरत पढ़ना जाइज़ नही.
नाही सुरेह फातिहा , नाही कोई दूसरी आयात पढ़े और ज़ोहर , असर , मगरिब , इशा की तीसरी और चौथी रकाअत में भी ना पढ़े .
इमाम की क़ीरत मुक़्तदी के लिये काफ़ी है.
फतावा-ए-रज़्विया
जिल्द न. 03 , पेज न. 62-88
इमाम ने ज़ोर से क़ीरत शुरू करदी हो तो मुक़्तदी सना ना पढ़े बल के चुप रह कर क़ीरत सुने क्यू के क़ीरत का सुन्ना फर्ज़ है.
फतावा-ए-रज़्विया
जिल्द न. 03 , पेज न. 61
. . . ( बी ) . . .
हज़रत-ए-साद बिन वक़ास رحمة الله عليه ने फरमाया के में इस बात को पसंद करता हू जो इमाम के पीछे क़ीरत करे उस के मुँह में अंगार हो. और फारूक़-ए-अज़म رضي الله عنه फरमाते है के जो इमाम के पीछे क़ीरत करता है. काश उस के मुँह में पत्तर हो. इमाम का ज़ोर से पढ़ने का मतलब ये है के दूसरे लोग कम-अज़-कम पेह्ली सफ्त वाले सून सके.
नमाज़ में ज़ोर से अमीन केह्ना मकरुह और खिलाफ़-ए-सुन्नत है.
मुन्फरिद ( अकेले पढ़ेने वाला ) को जेहरी नमाज़ फज्र , मगरिब , इशा में इख्तियार है के चाहे तो आहिस्ता क़ीरत करे या ज़ोर से करे लेकिन अफ्ज़ल ये है के ज़ोर से पढ़े .
और अगर क़ज़ा पढ़ रहा हो तो धीरे पढ़ना वाजिब है.
इमाम के लिये ज़रूरी है के बीमार , बुधे , कमज़ोर और काम पर जानेवाला ज़रूरत मंद मुक़्तदी का लिहाज करते हुवे लंबी क़ीरत ना करे के उन को तकलीफ़ पहुंचे बल के क़ीरत छोटी करे.
फतावा-ए-रज़्विया
जिल्द न. 03 , पेज न. 120
मस्लक-ए-आला हजरत सलामत रहे
एक पेह्चान दीन-ए-नबीﷺ के लिये
जमाअत रजा-ए-मुस्तफा
........................................
NAMAAZ KA BAYAAN
PART : 13 OF 62
NAMAAZ K KUCH ZAROORI MASAAIL
. . . ( A ) . . .
IMAAM K PICHE PADHNE WALE NAMAAZI ( MUQTADI ) NE TAKBEER-E-TAHRIMA KA LAFZ ALLAHU AKBAR IS TARAH KAHA K ALLAHU IMAAM K SAATH KAHA MAGAR AKBAR IMAAM SE PEHLE KHATM KIYA TOH US MUQTADI KI NAMAAZ NAHI HUWI
MUQTADI AUR AKELA PADHNE WALE KO TAKBEER-E-TAHRIMA ZORR SE KEHNE KI ZAROORAT NAHI.
SIRF ITNI AAWAAZ ZAROORI HAI K KHUD SOONE. MAGAR MUKABBIR KO ZORR SE TAKBEER DENA CHAIYE.
AGAR KOI AISA BEEMAAR YA KAMZOR HAI K DEEWAAR YA KISI CHEEZ KA SAHARA LEKAR YA TEK LAGA KAR KHADA HO SAKTA HAI TOH FARZ HAI K TEK LAGA KAR KHADA HO KAR PADHE.
FATAWA-E-RAZVIYAH
JILD NO. 03 , PAGE NO. 53
QUR'AAN PADHNE MEIN TAJWEED ZAROORI HAI. KAM-AZ-KAM ITNI K HURUF SAHIH AADA HO AUR GALAT PADHNE SE BACHE
NAMAAZ K SAHIH HONE K LIYE TAJWEED KA FUN JANNA ZAROORI NAHI. BAS HURUF SAHI AADA HONA ZAROORI HAI. BOHUT SE AISE LOG BHI HOTE HAI JO SOON SOON KAR SAHI PADHTE HAI. AGAR UN SE HURUF K MAKHAARIJ K BAARE MEIN PUCHA JAYE TOH MAKHAARIJ BATA NAHI SAKTE LEKIN WO QUR'AAN SAHIH PADHTE HAI.
FATAWA-E-RAZVIYA
JILD NO. 03 , PAGE NO. 128
JAMA'AT K SAATH NAMAAZ PADNE WALE NAMAAZI YAANI MUQTADI KO NAMAAZ MEIN QEER'AT PADHNA JAA'IZ NAHI.
NAHI SUREH FATHIYA , NAHI KOI DUSRI AAYAT PADHE AUR ZOHAR , ASAR , MAGREEB , ISHA KI TEESRI AUR CHOTHI RAKA'AT MEIN BHI NA PADHE.
IMAAM KI QEERAT MUQTADI K LIYE KAAFI HAI.
FATAWA-E-RAZWIYA
JILD NO. 03 , PAGE NO. 62-88
IMAAM NE ZORR SE QEERAT SHURU KARDI HO TOH MUQTADI SANA NA PADHE BAL K CHUP REH KAR QEERAT SOONE Q K QEERAT KA SUNNA FARZ HAI.
FATAWA-E-RAZWIYA
JILD NO. 03 , PAGE NP. 61
. . . ( B ) . . .
HAZRAT-E-SAAD BIN WAQAAS رحمة الله عليه NE FARMAYA K MEIN IS BAAT KO PASAND KARTA HU JO IMAAM K PICHE QEERAT KARE US K MUNH MEIN ANGAAR HO. AUR..FAROOQE AAZAM رضي الله عنه FARMATE HAI K JO IMAAM K PICHE QEERAT KARTA HAI. KASH US K MUNH MEIN PATTAR HO. IMAAM KA ZORR SE PADHNE KA MATLAB YE HAI K DUSRE LOG KAM-AZ-KAM PEHLI SAFF WALE SOON SAKE.
NAMAAZ MEIN ZORR SE AMEEN KEHNA MAKRUH AUR KHILAAF-E-SUNNAT HAI.
MUNFARID ( AKELE PADHNE WALA ) KO JAHRI NAMAAZ FAJR , MAGREEB , ISHA MEIN IKHTIYAAR HAI K CHAHE TOH AAHISTA QEERAT KARE YA ZORR SE KARE LEKIN AFZAL YE HAI K ZORR SE PADHE.
AUR AGAR QAZA PADH RAHA HO TOH DHEERE PADHNA WAAJIB HAI.
IMAAM K LIYE ZAROORI HAI K BIMAAR , BUDHE , KAMZOR AUR KAAM PAR JANEWALA ZAROORAT MAND MUQTADIYO KA LIHAZ KARTE HUWE LAMBI QEERAT NA KARE K UN KO TAKLEEF PAHUNCHE BAL K QEERAT CHOTI KARE.
FATAWA-E-RAZWIYA
JILD NO. 03 , PAGE NO. 120
MASLAK-E-AALA HAZRAT SALAMAT RAHE
EK PEHCHAN DEEN-E-NABIﷺ K LIYE
💟طالِبِ دُعا:-
جماعت رضا ء مصطفے ﷺ ٰباندرہ(ممبئی)
JaⓂat Raza E Ⓜustafa ﷺ Bandra(Mumbai)