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●अगर तुझे दुश्मन की कही हुवी बातों से दुःख पहुंचता है तो ऐसी पाक़ीज़गी वाली ज़िंदगी गुज़र के दुश्मन की बात हमेशा गलत साबित होती रहे.।
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●किसी जुर्म की सजा देने से पहले यह सोचना भी ज़रूरी है के उस शख्स ने वह जुर्म किन हालत मे किया.
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●खाकसार बनकर ही इंसान सरफ़राज़ होता है.
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●जिस शख्स ने भुख की तकलीफ कभी बर्दास्त न की हो वह भुख की हक़ीकत से वाकिफ नहीं हो सकता.
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●शैतन के फरेब और अपने गुमराह हो जाने के खतरे से किसी वख्त भी ग़ाफ़िल न होना चाहिए. क्योंकी आक़िबत उसकी बखैर होगी जो आखरी साँस तक राहे रास पर होगा.
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●नेक दिल, खुश अख़लाक़ी और शीरीं ज़ुबानी अल्लाह तआला के बड़े इनामात् है. और लुत्फ़ यह है के यह खुबिया हर शख्स अपने अंदर पैदा कर सकता है.
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●इंसान को चाहिए के बडी से बड़ी हैसियत हासिल करने के बावजूद अपने आपको तालिबे इल्म ख्याल करे. जो इंसान अपने आपको कामिल ख्याल करता है उसके बारे मे समझ लेना चाहिए के शैतान ने उसे गुमराह कर दिया है.
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●बुराई चाहे कितनी ही मामूली क्यों न हो उसे मामूली न समझना चाहिए. अगर बुराई को फ़ौरन ही मिटा न दिया तो वह आगे चलकर बहुत बड़ा गुनाह बन सकती है.
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●दुनीयां मे इस्लाम फौला दी तलवार के जोर से नहीं बल्कि अख़्लाक की तलवार के ज़ोर से फैला है.
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#(मोहम्मद अरमान गौस )
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