जब कामिल पीर ना मिले तो
अब कामिल पीर किसको कहते हैं उसके अन्दर किन शर्तों का पाया जाना ज़रूरी है ये भी समझ लिजिये...!!!!🔰पीर के अन्दर 4 शर्तें होनी चाहिय |
1) सुन्नी सहीयुल अक़ीदा हो यानी कि सुन्नियत पर सख्ती से क़ायम हो हर तरह की गुमराही व बद अमली से दूर रहे तमाम बद मज़हब फ़िर्कों से दूर रहे उनके साथ उठना बैठना,खाना पीना,सलाम कलाम,रिश्ता नाता, कुछ ना रखे ना उनके साथ नमाज़ पढ़े ना उनके पीछे नमाज़ पढ़े और ना उनकी जनाज़े की नमाज़ पढ़े...!!!
2) आलिम हो यानी कि अक़ायद व गुस्ल तहारत नमाज़ रोज़ा व ज़रुरत के तमाम मसायल का पूरा इल्म रखता हो और अपनी ज़रुरत के तमाम मसायल किताब से निकाल सके बग़ैर किसी की मदद के !
3) फ़ासिक ना हो यानी कि हद्दे शरह तक दाढ़ी रखे पंज वक़्ता नमाज़ी हो और हर गुनाह मसलन झूठ , ग़ीबत,चुगली, फ़रेब, फ़हश कलामी,बद नज़री, सूद,रिश्वत का लेन देन, तस्वीर साज़ी, गाने बाजे तमाशो से, ना महरम से पर्दा,गर्ज़ की कोई भी खिलाफ़े शरअ काम ना करता हो !
4) उसका सिलसिला नबी तक मुत्तसिल हो यानि कि जिस सिलसिले मे ये मुरीद करता हो उसके पीर की खिलाफ़त ( इजाजत ) उसके पास हो....!!!!!
जिसके अन्दर ये 4 शर्तें पाई जायेंगी वो पीरे कामिल है और अगर किसी के अन्दर एक भी शर्त ना पाई गई तो वो पीर नहीं बल्कि शैतान का मसखरा ह
सबा सनाबिल शरीफ़,सफ़ह 110🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹अल्हम्दु लिल्लाह अभी रूये ज़मीन पर बहुत से बा शरह उल्मा व मशायख़ इकराम मौजूद है मगर उन सब के सरदार और सर के ताज अगर कोई हैं तो वो हैं मेरे पीरो मुर्शिद
ग़ुले ग़ुलज़ारे रज़वियत पीरे तरीक़त रहबरे शरीयत फ़ख्रे अज़हर हुज़ूर ताजुश्शरिया हज़रत अल्लामा मौलाना मुफ़्ती अश्शाह मुहम्मद "अख्तर रज़ा" खान दामत बर्कतोहोमुल आलिया
अगर किसी को ज़िन्दा वली देखना हो तो वो बरेली चला जाये और हुज़ूर ताजुश्शरीया को देख आये
सुनो ऐलान दीवाना भरे दरबार करता है
वही सुन्नी है जो अहमद रज़ा से प्यार करता ै
वही ज़िन्दा वली हैं बा खुदा हर आदमी कहता
मेरे अख़्तर रज़ा का जो कभी दीदार करता
मेरे आक़ा मेरे दाता मेरे ताजुश्शरिया हैं
सना ये "ज़ेब" उनकी हर घड़ी हर बार करता ह