***** बैयत *****
आज बहुत सारे मुसलमान ये कहते हुये नज़र आते हैं कि हम तो पहले से ही मुसलमान हैं हमे मुरीद होने से क्या फ़ायदा
क्या वाक़ई बैयत होना कोई मायने नही रखता
और क्या वाक़ई मुरीद होने के कुछ फ़ायदे नहीं है
आइये क़ुरआन से पूछते हैं
1. वो जो तुम्हारी बैयत करते है वो तो अल्लाह ही से बैयत करते है उसके हाथों पर
📕 पारा 26,सूरह फ़तह,आयत 10
2. बेशक अल्लाह राज़ी हुआ ईमान वालों से जब वो उस पेड़ के नीचे तुम्हारी बैयत करते थे
📕 पारा 26,सूरह फ़तह,आयत 18
* मक़ामे हुदैबिया मे हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने अपने जांनिसार सहाबा से अपने हाथों पर सबसे बैयत ली यहां तक कि हज़रत उस्मान ग़नी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु वहां मौजूद नहीं थे तो हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने अपने एक हाथ को उस्मान का हाथ कहकर उनसे भी बैयत ली इस बैयत को बैयते रिज़वान के नाम से जाना जाता है अगर बैयत होना कोई चीज़ नहीं है तो क्युं हुज़ूर सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने ऐसा किया सहाबा इकराम तो पहले से ही नबी सल्लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम के नाम पर मर मिटने को तैयार थे फ़िर क्युं अपना हाथ उनके हाथ में दिया
ग़ौसे पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु तो पैदाइशी वली हैं बल्कि वलियों के भी वली हैं पीरो के भी पीर हैं फ़िर क्युं आप मुरीद हुये हज़रत शैख अबु सईद मख़ज़ूमी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से
अताये रसूल ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु तो हिन्दल वली हैं फिर क्युं आप मुरीद हुए हज़रत ख़्वाजा उस्मान हारूनी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से
आलाहज़रत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु तो मुजद्दिदे आज़म हैं फ़िर क्युं आप मुरीद हुए हज़रत सय्यदना शाह आले रसूल मारहरवी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु से
आइये जानते हैं क्युं,बैयत का लग़वी माना होते हैं बिक जाना,गोया कि आपने अपने आपको अल्लाह के किसी नेक बन्दे के हाथों बेच दिया अब आप पर खुद आपका भी इख्तियार ना रहा अब आपको खरीदार के हिसाब से अपनी ज़िन्दगी गुज़ारनी है जो वादा जो मुआहिदा आपने उसके हाथों में हाथ देकर किया है उसे हर हाल मे निभाना पड़ेगा
यक़ीन जानिये कि अगर आपने अपने आपको बिका हुआ समझ लिया तो आपका खरीदार कभी भी आपको फ़रामोश नही करेगा और हम जैसे बदकारों के लिये तो बैयत होना गोया निजात का ज़रिया है इस रिवायत को पढ़ लिजिये इंशा अल्लाह कुछ और समझाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी
3. हज़रत इमाम फ़खरुद्दीन राज़ी अलैहिररहमा का जब नज़अ का वक़्त आया तो इब्लीस पहुंचा और कहने लगा तुमने उम्र भर मुनाज़रो मुबाहसो मे गुज़़ारी क्या खुदा को भी पहचाना,आपने फ़रमाया बेशक खुदा एक है उसने कहा दलील दो,आपने दलील पेश फ़रमाई वह खबीस मुअल्लिमुल मलाकूत रह चुका है उसने वह दलील तोड़ दी आपने दूसरी दलील दी उसने वह भी तोड़ दी इस तरह आपने 360 दलीले क़ायम फ़ारमाई और उसने एक एक करके सब तोड़ दी अब आप सख्त परेशान हुए इमाम राज़ी के पीरो मुर्शिद हज़रत नजमुद्दीन कुबरा रजि़यल्लाहु तआला अन्हु कही दूर दराज़ मक़ाम पर वुज़ु फ़रमा रहे थे जब आपने अपने मुरीद का यह हाल देखा तो वही से फ़रमाया ऎ राज़ी दलीलो के चक्कर मे पड़ गया अरे कह दे कि मैने खुदा को बिना दलील के एक माना,इमाम राज़ी अलैहिररहमा ने यही कह दिया और आपकी रुह कब्ज़ हो गयी
📕 अलमलफ़ूज़,हिस्सा 4,सफ़ह 48
देखिये किस तरह एक मुर्शिदे हक़ ने अपने अपने मुरीद के ईमान की हिफ़ाज़त फ़रमाई,सोचिये जब इमाम राज़ी जैसे जलीकुल क़द्र इमाम को मुर्शिद की ज़रुरत थी तो हम और आप किस गिनती मे है लिहाज़ा मुरीद होना बहुत ही बेहतर है हां मगर पीर बा शरअ होना चहिये (इसकी तफ़सील आगे आती है) और जिसको कोई कामिल पीर ना मिले तो उसके लिये मुहक़्क़िक़े अहले माअ़रिफ़त आरिफ़ बिल्लाह हज़रत अहमद ज़रूक रहमतुल्लाह तआला अलैह फ़रमाते हैं कि
4. जिसको कोई कामिल पीर ना मिले तो वो कसरत से दुरूदे पाक पढ़े कि कल क़यामत मे उसका दुरूद ही उसका पीर बन जायेगा
📕 कुर्बे मुस्तफ़ा,सफ़ह 120
जब कामिल पीर ना मिले तो............
अब कामिल पीर किसको कहते हैं उसके अन्दर किन शर्तों का पाया जाना ज़रूरी है ये भी समझ लिजिये
पीर के अन्दर 4 शर्तें होनी चाहिये
! सुन्नी सहीयुल अक़ीदा हो यानि कि सुन्नियत पर सख्ती से क़ायम हो हर तरह की गुमराही व बद अमली से दूर रहे तमाम बद मज़हब फ़िर्कों से दूर रहे उनके साथ उठना बैठना,खाना पीना,सलाम कलाम,रिश्ता नाता,कुछ ना रखे ना उनके साथ नमाज़ पढ़े ना उनके पीछे नमाज़ पढ़े और ना उनकी जनाज़े की नमाज़ पढ़े
! आलिम हो यानि कि अक़ायद व गुस्ल तहारत नमाज़ रोज़ा व ज़रुरत के तमाम मसायल का पूरा इल्म रखता हो और अपनी ज़रुरत के तमाम मसायल किताब से निकाल सके बग़ैर किसी की मदद के
! फ़ासिक ना हो यानि कि हद्दे शरह तक दाढ़ी रखे पंज वक़्ता नमाज़ी हो और हर गुनाह मस्लन झूट,ग़ीबत,चुगली,फ़रेब,फ़हश कलामी,बद नज़री,सूद,रिश्वत का लेन देन,तस्वीर साज़ी,गाने बाजे तमाशो से,ना महरम से पर्दा,गर्ज़ की कोई भी खिलाफ़े शरअ काम ना करता हो
! उसका सिलसिला नबी तक मुत्तसिल हो यानि कि जिस सिलसिले मे ये मुरीद करता हो उसके पीर की खिलाफ़त उसके पास हो
जिसके अन्दर ये 4 शर्तें पाई जायेंगी वो पीरे कामिल है और अगर किसी के अन्दर 1 भी शर्ते ना पाई गई तो वो पीर नहीं बल्कि शैतान का मसखरा है
📕 सबा सनाबिल शरीफ़,सफ़ह 110